नींद न उनको आती
जिन्हें सताती हैं चिन्ताएं, नींद न उनको आती
और प्रेम में पड़ने पर भी, नींद हिरन हो जाती
नींद नहीं आती चोरों को, निशि में जाग्रत रहते
कवि भी प्रायः रात्रि जागरण की पीड़ा हैं सहते
कभी चन्द्रमा भी न रात में सोता पाया जाता
गुरु पत्नी के साथ हवस वह अपनी रहा मिटाता
सोते नहीं रात में तारे, वे दिप-दिप करते हैं
कवि-मन में मधुमयी कामना वे सदैव भरते हैं
घुग्घू सोते नहीं रात में, रहते आंखें फाड़े
बिल्ली भी जागती और रहती चूहों को ताड़े
जीव बहुत से निशाकाल में निज आहार जुटाते
बहुतेरे बहुतों को खाकर अपनी भूख मिटाते
जीव जीव का भोजन बनता,अद्भुत सृष्टि हमारी
एक दूसरे पर अवलम्बित है यह दुनिया सारी
रात्रि जागरण के होते हैं लक्ष्य सभी के न्यारे
जिनका कोई लक्ष्य नहीं वे, सो जाते हैं सारे
उच्चादर्श सामने रखकर हम भी निशि में जागें
सिद्ध करें साधना सात्विक,निज बुराइयां त्यागें
रामानुज की भांति जागरण जो साधक करते हैं
लक्ष्य प्राप्त कर वे समाज की भवबाधा हरते हैं
@ महेश चन्द्र त्रिपाठी