नींद की गोली
सपनों को
जो बेच रहें हैं
खाते रहें नींद की गोली … I
दिन भर जिनका
बहा पसीना
खेतों में ,
खलिहानों में ।
बिना धूप के
गर्मी सह गए
लोहे के
करखानों में ।
लात पेट पर
मारे उनके
लगा – लगाकर उनकी बोली.. I
खपा दिए
अपनी आशाएँ
अच्छे दिन
अब आएगें I
पता नही था
पास है जो कुछ
छीन उसे ले जायेगें ।
नाम टैक्स के
लूट मचाते
भरते रहते अपनी झोली..।
एक सड़ी मछली
की खातिर
हंसों को भी
चोर बताते ।
सुविधाओं का
लोभी चारा
फेंक सभी को
रहे फँसाते ॥
घूसखोर का
ठप्पा माथे,
देखे बस ये जनता भोली… ।