नींद का राग
घोंट दिया गला बचपन का,
उसने जीने की खातिर।
सोता जागता वह सीटी सुनकर
खुले आसमान के नीचे,
माटी के बिछौने पर,
ओढ़ चद्दर हवाओ का।
कभी-कभी वह सोता भी नहीं,
इस इन्तजार में कि
टेªन आने वाली है।
चढ़ जाता फिर वो अपनी नींद त्यागकर।
वो गाता तो खूब गाता
कभी प्रेम से, कभी हसकर
कभी खीजते हुए रोकर गाता।
बदतर हो गये हालात इतने
अब वह सोते हुए भी गाता।