नींद अब नहीं आती।
जब आंखों में नींद आती थी,
तब माँ लोरी गुनगुनाती थी,
पर अब माँ कहाँ गुनगुनाती है,
इसलिए आंखों में अब नींद भी नही आती है।
माँ का आँचल था,
और गोद का तकिया था,
हाथ की थपकी थी,
और परियों की कहानी थी
वो रातें भी कितनी प्यारी थीं,
वो रातें कितनी सुहानी थी।
पर अब न माँ आँचल है,
न गोद का तकिया है,
न अब कहानियों में परियां नज़र आती हैं,
इसलिए आंखों में अब नींद भी नही आती है।
सारे दिन की थकन ,
माँ के स्पर्श से दूर हो जाती थी,
जब माँ अपने हाथों से ,
मेरे बालों को सहलाती थी।
तेल डालती थी जब बालों में ,
तब नींद सी आ जाती थी।
पता ही नही चलता था,
आँख कब लग जाती थी
पर अब थकन तो है,
पर माँ का वो स्पर्श नहीं है,
प्रेम से डाला जाए बालों में,
वो माँ का अर्श नहीं है।
अब बिना तेल डालें ही,
जिंदगी गुजरती जाती है।
इसलिए आंखों में अब नींद भी नही आती है।
बिजली नहीं होती थी तब,
माँ बीजने से हवा करती थी,
सारी रात उसके हाथ की ,
बिजली नही जाती थी,
बीमार होने पर वो,
सौ बार नज़र उतारा करती थी,
सारी -सारी रात,
वो बैठकर मेरे सिरहाने गुजारा करती थी।
अब बिजली तो है,
पर वो प्यार भरा हाथ नहीं हैं,
नजर उतारने वाली ,
वो माँ रुपी सौगात नहीं है।
सारी-सारी रात अब अकेले,
यूँ ही आँखों में कट जाती है
इसलिए आंखों में अब नींद भी नही आती है।
इसलिए आंखों में अब नींद भी नही आती है