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5 Oct 2020 · 1 min read

” नि:स्वार्थ प्रेम “

अजीब सी कशीश है
इस प्रेम की अगन में
बस झोंक देना है
कोई परवाह नही
एक परम आनंद है इस लगन में ,

कैसा खिंचाव है
सुध – बुध बिसरा कर
इस लौ से आसक्त ये पतंगा
खींचा चला आता है
अपना सब कुछ लुटा कर ,

ये जो प्रेम के धागे है
हम इंसानों में ही गांठ लगाते हैं
इन पतंगों को देखो
नि:स्वार्थ प्रेम में
धागे सहित जल जाते हैं ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 20/09/2020 )

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 492 Views
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