” नि:स्वार्थ प्रेम “
अजीब सी कशीश है
इस प्रेम की अगन में
बस झोंक देना है
कोई परवाह नही
एक परम आनंद है इस लगन में ,
कैसा खिंचाव है
सुध – बुध बिसरा कर
इस लौ से आसक्त ये पतंगा
खींचा चला आता है
अपना सब कुछ लुटा कर ,
ये जो प्रेम के धागे है
हम इंसानों में ही गांठ लगाते हैं
इन पतंगों को देखो
नि:स्वार्थ प्रेम में
धागे सहित जल जाते हैं ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 20/09/2020 )