निश्छल चतुराई
सीढ़ी…बस एक ही है ।
ख्याति………. सफलता……..और… पुरस्कारों की …..।
किसी भी कीमत पर…… टिक जाना ।
और…. ।
किसी भी कीमत पर……..बिक जाना ।
टेढ़ी-मेढ़ी .. घुमावदार सीढ़ियां ।
छल ,छद्म और चतुराई से भरी होती हैं ।
अपने को स्थापित करने के लिए ,
जरूरी है इन्हें अपनाना ।
दूसरे को धकियाना ।
और आगे बढ़ जाना ।
मत देखो पीछे कि कौन रह गया ।
कौन क्या-क्या सह गया ।
पीछे अवश्य कोई ,
अपने सिद्धांतों की गठरी लिए ,
सीधे – सरल मार्ग से आ रहा होगा ।
तुम निश्चिंत रहो ।
वह आगे बिल्कुल नहीं निकल पाएगा ।
क्योंकि
वह उन कलाओं से अनभिज्ञ है ।
जिनमें तुम निष्णांत हो ।
अशोक सोनी ।
भिलाई ।