निष्कर्ष ! क्षुब्ध मन से ……..
नहीं चाहिए संवेदना और
मुआवजा उस बच्ची को,
कुछ नहीं वह समक्ष उसके ,
झेला उसने जिस प्रताड़ना को ।।
सर्वत्र लूटा कर जिसने,
नवजीवन का संचार किया ।
माँ, बहन, बेटी व पत्नी बन,
हर मोड़ तुम्हारा साथ दिया ।
अब अग्नि परीक्षा उनकी नहीं,
हे नर, अब तुम्हारी बारी है ।
सम्मान बचाओ नारी का,
घड़ी अब फैसले की आई है ।।
क्रोधित जब होगा, मन नारी का !
सोचो क्या स्थिति होगी … ?
न दिन होगा न रात,
न ही पृथ्वी में कोई गति होगी ।।
हे पुरुष ! तुम्हें पुरुषार्थ का,
गौरव भी हमने दिया,
एक माँ ने असंख्य दर्द सहकर,
इस पृथ्वी पर तुम्हें जन्म दिया ।।
क्या इसलिए कि………………………..
क्या इसलिए कि इक बच्ची संग,
तुम निर्मम निर्दयी व्यवहार करो ।
या इसलिए कि अपने सद्कर्मों से,
उस माँ को गौरान्वित करो ।। (2)
~ज्योति