निषिद्ध कर्मों को त्याग सदा
निषिद्ध कर्मों को त्याग सदा
पायें सदा सुख शांति
मृगतृष्णा है ,यह माया नगरी
पग पग मिलत है क्रांति
काम क्रोध अरू लोभ है
छल कपट की भ्रांति
मृगतृष्णा है माया नगरी
पग पग मिलत है क्रांति
अपनों से हैं अपनों लड़ें
न मिलत है सुख शांति
मृगतृष्णा है माया नगरी
पग पग मिलत है क्रांति
सुख शांति की आस में
उम्र बिताया, अब साठ
अपना तो यहां कोंई नहीं
और बैर बढ़ा है ब्रम्ह गाठ
जिनका होता है कोई नहीं
पकड़ मंत्र यह गाठी
ब्रम्हा नंद सुमर नर मुरख
वहीं मिलेंगे सुख शांति
न काहु की चुगली चारी
न काहु से रहेगा बैर
काम्य कर्मों को त्याग दें
तब रहेगा, जग में खैर
सब चलते हैं राह डगर
स्वभिमान की डांडी
ब्रम्हानंद के छोड़ चरण
नही मिलेंगे सुख शांति
पग पग यहां, काल बिराजत
पग पग में है क्रांति
छन भंगुर है यह माया नगरी
नही मिलेंगे सुख शांति
विनित
डां विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग