निश्छल छंद विधान
निश्छल -छंद का विधान में मुक्तक
“निश्छल- छंद” सम मात्रिक छंद है। यह 23 मात्राओं का छंद है जिसमें 16,7 मात्राओं पर यति आवश्यक है। अंत में वाचिक भार 21 यानि गुरु लघु (गाल) होना अनिवार्य है। चार चरण वाले निश्छल छंद में क्रमागत दो-दो या चारों चरण समतुकांत होते हैं। 16 मात्राओं के अंत में चौपाई छंद के विधानानुसार चौकल आता है, जगण (121) नहीं।
“कहर ढाहता घोर कुहासा”
पहन शीत की झीनी चादर, आई भोर।
लगा धुंध का पहरा जग में, चारों ओर।
ठिठुर रहा खगदल शाखा पर, बैठा मौन-
अस्त-व्यस्त जन-जीवन सारा, चले न ज़ोर।
कहर ढाहता घोर कुहासा, करे प्रहार।
बर्फ़ीली सी चलें हवाएँ, जन लाचार।
पीत पत्र गिरते तरुवर से, बिना प्रकाश-
वयोवृद्ध निर्बल पर भारी, ठंड अपार।
घास-फूस के छप्पर टूटे, गिरे मकान।
शिथिल पड़े सब सड़क किनारे, गुम पहचान।
ताप धरा का घटता जाता, जग बेहाल-
पूस महीना कर्कश आया, लेने जान।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी उ. प्र.)