निश्चल क़दम
ठहरा है जो अपने शांत भाव से ,
शांत सरोवर कुछ कमल लिए ।
अभिलाषाएँ कुछ कर पाने की ,
कुंठाएं नही न चल पाने की ।
सींच रहा अपने मन आँगन को ,
अंजुली भर जल वो लिए हुए ।
टकराएंगी मेरी लहरे मेरे साहिल से ,
आएगा कोई हलचल का भाव लिए ।
सहज रहा है वो बूंदे अम्बर की ,
“निश्चल” से अपने कदम लिए ।
…. विवेक दुबे”निश्चल”@..
रायसेन