‘निशात’ बाग का सेव (लघुकथा)
हमारी जिंदगी का एक यादगार लम्हा था। कश्मीर के “निशात बाग का सेव”।
ये कहानी सन् 1982 ई० की है। उस समय आज की तरह कश्मीर का माहौल खराब नहीं था। सब कुछ बहुत अच्छा था। हम सब बेखौफ हर जगह आ जा सकते थे। सच में हमने “धरती के स्वर्ग” कहा जाने वाले कश्मीर को देखा है। यह सत्य है कि प्रकृति ने कश्मीर को दिल खोलकर सुन्दरता प्रदान किया है। लोग ठीक ही कहते हैं कि कश्मीर धरती का स्वर्ग है। उस समय मैं अपने पति के साथ लाल चौक के पास ही जवाहर नगर में रहती थी। हम सभी हर रविवार को किसी न किसी बाग में घूमने जरुर जाते थे। जैसे शालीमार, निशात, चश्मे साही, शंकराचार्य मंदिर, पहलगांव, गुलमार्ग आदि। हमारे घर से लाल चौक जाने के रास्ते में झेलम नदी थी जिसे शिकारा से पार करने के लिए उस समय सिर्फ 30 पैसे लगते थे। हमारे घर से टूरिस्ट सेंटर जाने के लिए मेटाडोर से 50 पैसे तथा निशात बाग के लिए मात्र 1 रूपया किराया था।
एक दिन हम दो परिवार मिलकर निशात बाग घूमने के लिए गए। हमने वहाँ पहली बार सेव के पेड़ और पेड़ों पर लगे सेव देखे थे। मेरी सहेली उन दिनों गर्भवती थी और ये उनका पहला बच्चा होने वाला था। पेड़ पर कच्चे सेव देखकर उनका मन कच्चा सेव खाने को किया। इसी खुशी में हम दोनों औरतों ने एक-एक कच्चे सेव तोड़ लिए। तभी माली आकर चिल्लाने लगा और बोला कि यहां पर इस बाग से सेव तोड़ना मना है। आप लोगों को इन दोनों सेव तोड़ने के लिए जुर्माना देना होगा। हमारे पति हम लोगों के उपर बहुत नाराज हुए और माली से पूछे कितना जुर्माना हुआ। माली बोला साहब एक सेव का 100 रुपया। यानी दो सेव का 200 रुपये। 200 रुपये 1982 ई० में बहुत होते थे। उन दिनों श्रीनगर में सेव दो रुपया किलो बिक रहा था। माली को हमारे पति बोले हम लोग फौजी हैं और हम मानते हैं कि यहां सेव तोड़ना गलत है, हमसे गलती हुई है। तुम इस सेव की कीमत ले लो। 100 रुपए एक कच्चे सेव के लिए तो अनुचित है। बहुत समझाने पर भी माली नहीं माना और लड़ाई-झगड़े पर उतर आया। तब के समय में हमें उस दो सेव के लिए 200 रुपये देने ही पड़े थे। उस लम्हे को हम सब आज तक नहीं भूले हैं। जब भी कश्मीर की या सेव की बात चलती है
तो हमें वो लम्हे याद आ जाते हैं और हम
सब उन लम्हों को याद करके हँसने लगते हैं।
जय हिंद