निवर्तमान शिक्षा व्यवस्था
विधा—- दोहा
प्रश्न :- क्या वो समय ज्यादा सही था या अब सही है या इसके बीच में कुछ और होना चाहिए?
पढाई और संसाधनों में क्या समन्वय होना चाहिए?
आज के हालात में क्या अपने शिक्षकों के प्रति सम्मान के भाव आते हैं या इन हालातों में आप एक बाद फिर से पढना चाहते हैं?
कैसे थे आपके शिक्षक?
कैसे हैं आज के शिक्षक?
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रचना—- उत्तर ?
राजा, रंक, भिक्षु सभी, या फिर हो भगवान।
कृष्ण सुदामा साथ में, पढ़ते एक समान।।१।।
आज व्यवस्था अलग है, शिक्षित, जो धनवान।
निर्धन को शिक्षा नहीं, मिले नहीं सम्मान।।२।।
संसाधन हैं बढ़ रहे, संस्कार सब लुप्त।
पढ़ा लिखा साहब बना, आचरण है विलुप्त।।३।।
संस्कार – संसाधन का, होगा सुंदर मेल।
विहस उठेगी सभ्यता, उगे नहीं विषवेल।।४।।
ऐसी हालत में भला, कौन पढ़ेगा आज।
बिना अर्थ इच्छा . मरे, चढ़ें नही परवाज।।५।।
गुरुकुल की शिक्षा भली, मिलते शुद्ध विचार।
देवतुल्य शिक्षक सभी, सुंदर सद्- व्यवहार।।६।।
गुरु शिष्य की परम्परा, आज कहाँ वह प्यार।
रही नहीं वह भावना, आर्थिक है व्यवहार।।७।।
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#घोषणा
मैं [पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन”] यह घोषणा करता हूँ कि मेरे द्वारा प्रेषित रचना मौलिक एवं स्वरचित है।
[पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’]
स्थान:- दिल्ली