निवर्तमान चित्रण (भोजपुरी)
आयोजन-छन्द कार्यशाला
छन्द-रोधेश्यामी/मत्त सवैया
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आफत बिपत कुफूत घेरलस, जगत में बढ़ल आज झमेला।
तरु काट आफत के नेवता, देखीं अब कुदरत के खेला।
आक्सीजन के मारा मारी, प्रदुषित सब जन – जीवन बा।
कइसे जान बचीं वसुधा पर, कातर भाव भरल हर मन बा।।
हर मन में बा भरल हतासा, कुदरत भी अब क्रूर भइल बा।
गहिरे सागर में उतरल मन, आसा मन से दूर भइल बा।
सोचत बा भइलें का गलती, काहे हम से विधना रूठल।
पाप भइल जो पेड़ काट के, भरल पाप से गगरी फूटल।।
कूंआ जे खोदे उहे गिरेला, रीति इहे कुदरत के भाई।
कूंप खोदाइल पंथ में पहिले, आज बनल ऊ गहिरा खाई।
अबही मौका बा सुधरे के, ना तऽ प्रलय एक दिन आई।
आज नमुना जवन दिखवलसऽ, काल्ह इहे जन- जन के खाई।।
✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार