निर्लज्ज बारिश
बारिश की आस लिए मन में मैने पकोड़े बनाए ।
मगर बारिश को हाय! इस पर भी रहम न आए ।
मजाल क्या है एक बूंद भी टपका दे आसमान से ,
हमारे मन को तरसाए ,निर्लज्ज को लाज न आए.
बारिश की आस लिए मन में मैने पकोड़े बनाए ।
मगर बारिश को हाय! इस पर भी रहम न आए ।
मजाल क्या है एक बूंद भी टपका दे आसमान से ,
हमारे मन को तरसाए ,निर्लज्ज को लाज न आए.