निर्मेष के दोहे
चाहे वह धनवान हो, या कि रहा बलवान।
डसा कोरेना ने सबको, निर्भय हो भगवान।।
बंद तुम्हारे मंदिर भी, बंद हो गया धाम।
भक्तों से तुम भी थके, करते हो आराम।।
जाएं किसकी शरण मे, किससे करे गुहार।
जोह रहे असहाय मौत, गए सभी है हार।।
गढ़ बुहान में जन्मा ये, अब रोता है संसार।
तेजी से है बढ़ा रहा, अपना ये विस्तार ।।
कुछ लोगो का दावा ये, है जैविक हथियार।
है चीन का मकसद अब, हथियाना संसार।।
बना चीन जब भस्मासुर,नानी उसको आयी याद
समझ नही उसको है आता, कहाँ करे फरियाद ।।
आफत पश्चिम में बरपाया, पूरब में आतंक।
अवनि बना है चीन तो, हम भी बने पतंग।।
खड़ी मुहाने मौत है, जबरी और नही अपने से।
बच के रहने में भला, देर दवा है आने में।।
मास्कहीन बाहर नही, निकलोगे सरकार।
सारी मेहनत आज तलक की, हो जाए बेकार।।
हाथ मिलाना कभी नही, ये पश्चिम की रीति।
नमस्कार का लेन देन ही, रही हमारी नीति।।
दो मीटर की दूरी भैया, रखना सभी जरूर।
हो बलिष्ट तुम कितना भी, करना नही गुरूर।।
बाहर से भीतर आते ही, कपड़ा रहे न शेष।
हाथ पैर सब धो-सुखाकर,घर में करे प्रवेश।।