‘निर्मल स्वच्छ अंतर्मन हो’
स्वच्छ छवि मण्डित हो अद्भुत
पावन गंगा-सा हर घर निर्मल हो!
मंदिर-मस्जिद-गिरजाघर और
गुरुद्वारा सा हर घट निर्मल हो!
ऊँचे विचार दया और करुणा
सहानुभूति हो हर जन-मन में!
परोपकार और आत्मभाव हो
कृतज्ञ-समर्पण हो मानव तन में!
गुरुनानक और रविदास-सम,
समरसतामय जन गण मन हो!
बुद्ध-विवेकानंद-मयंक-सा
निर्मल-स्वच्छ अंतर्मन हो!
✍के.आर.परमाल ‘मयंक’