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15 Jun 2024 · 1 min read

निर्मल मन तुम

तुम निर्मल मन (स्वर्णमुखी छंद/सानेट)

प्रिय पावन तुम अमृत धारा।
नित सेवा करने को उत्सुक।
हृदय समेत धर्म के इच्छुक।
मोहन एक कर्म हो प्यारा।

संवेदना भरी रग रग में।
सकल वदन में प्रेम अहिंसा।
यह जीवन का मौलिक हिस्सा।
स्नेह घुँघुर झंकृत प्रिय पग में।

निर्मल पृष्ठ भूमि सम्मोहक।
संस्कारों का भव्य देश तुम।
प्रिय संचित प्रारब्ध वेश तुम।
उज्ज्वल मनभावन शिव बोधक।

तुझ सा प्रियतम कौन यहाँ है?
मूल्य आधुनिक मौन यहाँ है।।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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