निर्भया
मुद्दतों का दर्द
शहर का वो पहर
घातक बन गई ।
खौफनाक वो पल
प्राणघातक बन गई ।
बेमौत मार दिया जाना।
यूँ ही साँसें उखाड़ देना I
बरबाद कर देना।
बेकसूर को सजा देना।
किस कसूर की सजा है।
बता सकता हैं कोई ?
मेरे हकीकत में क्या बचा ?
फैसला भी अदालत के नाम ।
ये सच्चाई है, विभिन्न पहलुओं से गमगीन हो कर,
मेरे अपने गुजरते है ।
शब्द रहित होकर जीते है ।
हवस के विखण्ड मानसिकता लिए,
वो अत्याचारी,वो बलात्कारी घूम रहा था।
आज भी दंभ भर हवस के कुलबुलते कीड़े ,
तू अपने गंदे मानसिकता चूम रहा है।
उस माँ के साहस को सलाम , जिसने लड़ाई लड़ी।नसीहत दी , उस अधिवक्ता के नाम
जिसने सजा दिलाई उस मुजरिमों के नाम।
पर मैं क्यों मार दो गई , मुर्दा बना दिया मुझे अस्तित्व के नाम पर,निर्भया सेन्टर बना दिया मुझे , मुद्दतों का दर्द । असिमित दर्द ।
_ डॉ. सीमा कुमारी , बिहार ( भागलपुर ) ये रात2:39 मिनट में लिखी 4-1-022 की स्वरचित रचना है मेरी I