निर्धनताक गोद मे प्रतिभाक बीज
अहाँ सबहक बीच कथा ” निर्धनताक गोद मे प्रतिभाक बीज” भाग २—-आरंभ
पंडित काका, हुनकर दुखक विवरण कतेक करु,छी हम लेखक मुदा अश्रु नयन संगे लेखनी हाथ में लय लिख रहल छी। एतवे नय पंडित काका अपन किछु जमीन बेचि कय कन्यादान केलाह, कन्यादानक उपरान्त
अभिषेक जे आव मैट्रिकक परीक्षार्थी छलाह,राति क पढ़वाक हेतु अभिषेक अपन बाबुजी संगे सूतैत छलाह डिबिया बगल मे राखि कय सुतैत छलाह ताकि जागि कय पढ़ि सकैथ।एहि तरहेँ अपन गरीबी सँ लड़ैत मेहनत खुब मन सँ करय लगलाह,जखन अभिषेक राति में जागि पढ़ैत छलाह त बगल मे निन्द मे हुनकर बाबुजी जे भरि दिन धूप मे
काज में लीन छलाह कुहरय लगैत छलाह ई कुहरनाय सुनि बाबुजी के जाँत पीच कय पुरा शरीर कय ठेही उतरबाक कोशिश करैत छलाह। पंडित काका प्रसन्न छला त अपन बेटा सँ जे आजुक युग मे भाग्यशाली के एहन सपूत भेटैत अछि। मैट्रिकक परीक्षा फल घोषितभेल अभिषेक अपना स्कूल मे सबसँ बेसी अंक लय उत्तीर्ण भेलाह मुदा होइत अछि वो जे पूर्व में विधाता लिख देने
रहैत छथि पंडित काका रोगग्रस्त भ गेलाह आऽ ओछायन पकैरि लेलाह ।आव अभिषेक पर सबटा भार आवि गेलनि ,अभिषेक छोट मोट ट्यूशन पढ़ावैयत बाबुजी के दवा पर खर्च करैत ऐनप्रकारेन जीवन निर्वाह करैत छलाह।एक दिन अभिषेकक मझिला काका जिनका खेत में पंडित काका काज करैत छलाह, पंडित काका जे ओछायन पर परल अपन पीड़ा सँ लड़ैत छलाह हुनका ओछायनक बगल मे आवि मझिला काका पंडित काका सँ पुछलखिन—–कि रौ ,केहन मन छौ?ई सुनैत पंडित काका बजलाह—कि रहत भैया,आब त हिम्मत हारि चुकल छी,ई कहैत पंडित काका एकाएक चिन्तित मुद्रा मे बजलाह—-भैया जौं हमरा किछु भय जाय,हम नय रही तँ हमरा अभिषेक के कनि देखबय ई बजैत पंडित काका भोखासी दय कानय लगलाह,मझिला काका चुप करवैयत बजलाह —–तू चिन्ता जूनि कर,सब हेतैय।
ठीक दू दिनक बाद पंडित काका के हालत दयनीय भय गेलनि,गोदान वैतरणी सब भेल,बेटी ऐलनि। पंडित काका एकदम मरणावस्था मे भय गेला मुदा अन्दर सँ अखनो सब बुझैत छलाह,बगल मे बैसल अभिषेकक हाथ पकड़ि लेलाह आ आँखि सँ अश्रु धारा बहय लगलनि,अभिषेक बाबुजी के ई देखैत जोर सँ कानय लगलाह कि तावेत मे अभिषेक देखैत छथि कि बाबुजी अहि दुनिया के छोड़ि चुकल छथि। कन्नारोहट सँ पूरा वातावरण ओही ठामक भावुक भय गेल। अभिषेकक काका आ टोल पड़ोसक लोग अभिषेक के चुप करा क्रिया कर्म संपन्न भेल। श्राद्धक उपरान्त अभिषेक अपन विधवा माँ के सेवा में तल्लीन भय कार्य में लागि गेलाह ,एक दिन मझिला काका अभिषेकवा अभिषेकवा आवाज दैत तामस मुद्रा मे ऐलाह आ अभिषेक सँ कहैत छथि——हे रौ अभिषेकवा,बाप के क्रिया कर्म कय ले ले आ आँखि मुइन कय रहि गेलें,भेंटो तक नय केलें ,गायक पाय आ भोजक खर्चा ई सबहक हिसाब कहिया करवें?
काका आब तँ अहाँ सभ जे जेना कहब हम करब ई कहैत अभिषेक असोरा पर काका के पीढ़ी दय बैसय लेल आग्रह केलाह।बगल मे भैंसुरक लाज रखैत हुनकर माँ घूँघट में ठार छली। काका बजलाह——–देख अभिषेक,बाप तोहर छलौ त हम ई सोचैत छलौं जे कमोबेस खेत मे एकटा मजदूरक काज कय दैत अछि ताहि सँ देब लेब में हिचकिचाहट नय छल मुदा आब,की बीच मे अभिषेक कहला——काका हमहु काज कय देब ई सुनैत काका कहला —जे देख अभिषेक,तोरा सँ हेतौ कि नय कारण जे तू कहियो केने नय छै,मुदा एकटा उपाय अछि,जौं तू हमरा भूतही गाछी के जे दू कट्ठा जमीन छौ दय दे सब चुकता भय जेतौ ई सुनैत अभिषेक काका सँ कहला—– काका हमरा बस वेहाटा दू कट्ठा जमीन अई वोहो जौं अहिं के दय देब त हम कि खायब आ कोना माँ के राखब?हम त सोचैत छी ओही के जोईत कोयरि कय उपजावी आ संगे पढ़ाई के जारी राखि,ई सुनैत काका तमसा कय उठला आ अभिषेक के कहैत छथि—–अभिषेकवा तोरा कि होइत छौ ,पढ़ि कय तू कलक्टर बनि जेबे आ बड़बड़ाईत चलि गेलाह।
(शेष भाग 3 मे)