निर्जन पथ का राही
निर्जन पथ का राही हूँ मैं,
निज आँसू पीना आता है।
बीहड़ता में रहकर मुझको,
कांटों में जीना आता है ।।
चाहे रोको मार्ग हवा का,
या फिर ढक लो रवि की किरणें।
शूल भरी हों दसों दिशाएं
फिर भी जी भर कर हँसता मैं।।
कहाँ हार मानी है मैंने?
कटु विष भी पीना आता है।।
बीहड़ता में रहकर मुझको,
कांटों में जीना आता है ।।
मैं स्थिर हूँ, सीखो तुम भी,
अपने मन को स्थिर रखना ।
पीछे पीठ हँसेंगे सारे
हाल न दिल का जग से कहना।।
रह सकता तन ढककर जिसको,
खंडित पट सीना आता है।
बीहड़ता में रहकर मुझको,
कांटों में जीना आता है ।।
यह दुनिया निष्ठुर है प्यारे
उन्नत मस्तक करके रहना ।
कृपापात्र मत बनना, अपने-
स्वाभिमान को जीवित रखना।।
मस्तक नीचा कर जीने में,
हक को भी छीना जाता है ।।
बीहड़ता में रहकर मुझको,
कांटों में जीना आता है ।।
✍️ -नवीन जोशी ‘नवल’