निराशा तुझको छोड़ चुकी हूं मैं।
निराशा तुझको छोड़ चुकी हूँ मैं,
अब फिर से वापस न आना,
आशाओं के जो फूल खिले हैं,
अब तुम उनको न मुरझाना,
विश्वास जगा है मन में फिर से,
उम्मीद का दामन थाम चुकी हूँ,
नई जोत जगी है मेरे मन में,
अंधकार अब छटने लगा है,
आशा की एक नयी किरण से,
ज्ञान पुंज उदित होने लगा है,
पंख फैलाये हैं सपनो ने फिर से,
मन ख़ुशी से नाचने लगा है,
देदीप्यमान हो स्वाति नाम अब,
मेरा मन यह निश्चय कर चुका है,
भेद कर निराशा का अँधियारा,
दृढ़ निश्चय हाथ थामे खड़ा है।।
By:Dr Swati Gupta