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25 Nov 2022 · 1 min read

निराली दुनिया

दुनिया है ये खूब निराली,
दिनकर पर गोधूलि हँसती है।
घात लगाए शेर है बैठा,
बकरी की गर्दन फँसती है।

कटते पेड़ नीम का हरदम,
फिर भी कड़वाहट बढ़ती है।
रोज मिठाई महँगी होती,
औ सुगर रगों में चढ़ती है।

बढ़ी ताड़ वृक्ष की कीमत,
छाया भी लम्बी पड़ती है।
सावन भादो सूखे बीते तब,
नैना बादल बन झड़ती है।

बड़े चटख हैं फूल निराले,
खुशबू न सेमल जड़ती है।
कठपुतली का खेल निराला,
रजकण आंखों में गढ़ती है।

बगुले ध्यान लगा बैठे हैं,
सुंदर सीधी मीनों का।
कोयल दुबकी आस में बैठी,
बसन्त वाले दिनों का।

अपनी सुंदर सींगों से,
बारह सिंहे फँस जाते हैं,
दूध पीने वाले विषधर,
अक्सर ही डँस जाते हैं।

अपने अंदर की कस्तूरी,
मृगा समझ नहीं पाते हैं,
जलती लौ पर आ आ दीमक,
एक दिन ही मिट जाते हैं।

————————————-
अशोक शर्मा, लक्ष्मीगंज,
कुशीनगर 9838418787

Language: Hindi
112 Views

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