निरक्षरता का दर्द
कैसे मनाऊं त्यौहार,
कैसे लिबाऊ कलम दवात।
कमरतोड़ महंगाई में,
कैसे खिलाऊ दाल भात।
फूटी मेरी किस्मत,
नहीं पढ़ पाईं बहुत।
अब पीट रही हूं मेरी किस्मत,
पढ़ लिख जाती,
अंधविश्वास दूर भागाती।
निर्धनता से निजात पाती,
शिक्षित परिवार में जाकर,
सुख चैन की बंसी बजाती।
नारायण अहिरवार
अंशु कवि
सेमरी हरचंद होशंगाबाद
मध्य प्रदेश**