*नियुक्तियॉं रद्द हो गईं (हास्य व्यंग्य)*
नियुक्तियॉं रद्द हो गईं (हास्य व्यंग्य)
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अधिकारी खुशी के मारे फूला नहीं समा रहा था। आखिर विषय ही कुछ ऐसा था । ऊपर से सूचना आई थी कि एक नियुक्ति होनी है। नियुक्ति अधिकारी के हाथ में थी।
सरकारी नौकरी की खबर जंगल में आग की तरह फैलती है। कुछ लोगों को पता चलना शुरू हो गया । वह अधिकारी के पास जुगाड़ लगाने के लिए पहुॅंच गए। दो सज्जन हाथ में एक-एक किलो मिठाई के डिब्बे लेकर पहुंचे थे । दफ्तर के बाहर अधिकारी से मिलने का इंतजार कर रहे थे । एक ने काजू की कतली का डिब्बा अपने हाथ में पकड़े-पकड़े जब दूसरे सज्जन के हाथ में भी काजू की कतली वाला ही डिब्बा पाया तो उनका माथा ठनका । पूछने लगे “आपका कैसे आना हुआ ?”
दूसरे सज्जन ने जवाब दिया “आजकल किसी सरकारी अधिकारी के दफ्तर में काजू की कतली लेकर पहुंचने वाला व्यक्ति किसी बड़े काम के लिए ही आता है ।”
बात यद्यपि गोलमोल तरीके से कहीं गई थी, लेकिन पूछने वाले सज्जन समझ गए कि यह आदमी भी जुगाड़ लगाने आया है । बस दोनों एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हो गए ।
“कौन सी दुकान से कतली खरीदी ?”-पहले वाले सज्जन ने पुनः प्रश्न किया ।
“कतली तो सब एक-सी होती है ।बस यहॉं से तो शुरुआत होती है । आगे चलकर देखिए कुल कितने डिब्बों में मामला निपटे !”
पहले वाले सज्जन बुझी हुई हॅंसी वाला चेहरा दिखाने के लिए विवश हो गए । बात ही कुछ ऐसी थी ।
थोड़ी देर में नुकती के लड्डू लेकर दो सज्जन आए । यह पति-पत्नी थे । जब दरबान ने उन्हें भी बाहर बैठने के लिए कहा तो वे गुस्सा हो गए। कहने लगे-” लल्लू से मिलने के लिए भी क्या हमें टाइम लेना पड़ेगा ? ”
दरबान आश्चर्यचकित होकर पूछने लगा “लल्लू ?”
पति पत्नी ने कहा “तुम्हारे लिए साहब कुछ भी हों, हमारे लिए तो लल्लू ही रहेंगे । गोदी में खिलाया था । जाकर कहो कि मामा-मामी आए हैं। एक मिनट की भी देर की तो तुम्हारी खैर नहीं !”
दरबान थोड़ा-सा डरते हुए केबिन के अंदर गया और एक मिनट में ही बाहर आकर मामा मामी से बोला “”आइए ! चलिए ! साहब ने बुलाया है ।””
गर्व से भरी हुई मुस्कान लेकर मामा-मामी बाहर बैठे हुए सज्जनों को मानो पराजित करते हुए अधिकारी के कक्ष में चले गए। काजू की कतली के डिब्बे यह देख कर औंधे मुॅंह गिर पड़े। उनका यह बड़ा भारी अपमान था।
अधिकारी ने अंदर मामा-मामी की आवभगत तो की। उन्हें चाय और नाश्ता भी कराया। लेकिन जब नियुक्ति का प्रश्न आया, तब कन्नी काट गया । बोला,” यह सब मेरे हाथ में नहीं है। कमेटी में चार लोग और भी बैठेंगे । मेरी कहॉं सुनी जाएगी !”
सुनकर मामा तो चुप रहे लेकिन मामी तेज थीं। बोलीं , “हमें खेल मत खिलाओ। सब कुछ तुम्हारे हाथ में है । क्या चाहते हो ? साफ-साफ कहो । जिसको जो देना है, खुल कर बताओ। हम पीछे नहीं हैं। ”
अधिकारी कच्ची गोलियाॉ नहीं खेला था । उसे मालूम था कि लेनदेन के मामले में मामा-मामी किस सीमा तक जा सकते हैं। उसके बाद झिक-झिक होती। इससे बेहतर यही था कि उसने लेन-देन की बात ही नहीं की। कहने लगा “”मसला लेनदेन का नहीं है। मसला नियुक्ति के अधिकार का है । फिर भी आप लोग आए हैं तो मैं पूरा ख्याल रखूॅंगा ।अगर कुछ खर्चा हुआ तो बाद में लेता रहूॅंगा । मामा तो प्रसन्न होकर अधिकारी को आशीर्वाद देने के बाद कक्ष से बाहर निकल गए लेकिन मामी असंतुष्ट थीं। बाहर जाते-जाते भी फिर लौट कर आईं और बोलीं “लल्लू। ! हमें गच्चा मत देना । हम तुम्हारी मामी हैं ।” अधिकारी यह सुनकर मुस्कुराने लगा ।
फिर उसके बाद काजू की कतली वाले लोग एक-एक करके मिले । उन्हें भी अधिकारी ने टटोला और ध्यान रखने की बात कही । तीनों ही ग्राहक उसके अनुमान के अनुसार मोटी आसामी नहीं थे । वह कुछ और चाहता था ।
दरबान इस बीच सारा मामला भॉंप गया था । उसमें अपने भतीजे को फोन लगाकर बुला लिया था ।। जब अधिकारी दफ्तर में अकेला हुआ, तो दरबान भतीजे के साथ अंदर आया। भतीजे ने पोटली निकाली और अधिकारी की मेज पर रख दी। अधिकारी पोटली को देखने लगा ! ” हजूर पूरी कीमत है ! ”
फिर अधिकारी के कान में फुसफुसाया। सुनकर अधिकारी सचमुच प्रसन्न हो गया । बोला -“तुम्हारा मामला पक्का समझो ! रकम यहीं छोड़ जाओ।”
इसके बाद दरबान और उसका भतीजा उठ कर जाने ही वाले थे कि तभी अधिकारी के मोबाइल की घंटी बजी। उसने मोबाइल कान पर लगाकर बात करना आरंभ किया । जैसे-जैसे बात आगे बढ़ती जा रही थी, अधिकारी का चेहरा सफेद पड़ता जा रहा था। उसके मुॅंह से केवल अरे-अरे के ही शब्द निकल रहे थे । जब बात समाप्त हुई तो अधिकारी बिल्कुल टूट चुका था । बुझे शब्दों से उसने दरबान और उसके भतीजे से कहा “नियुक्तियॉं रद्दद हो गई हैं । ” दरबान और उसके भतीजे ने झट से रकम की पोटली हाथ में ली और दफ्तर से बाहर चले गए ।
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लेखक :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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