नियम और कानून निभाना पड़ता है
गीतिका
नियम और कानून निभाना पड़ता है ।
कोरोना में धैर्य जुटाना पड़ता है ।
दिन में घर संध्या को जाना पड़ता है ।
पुलिस नजर से फेस बचाना पड़ता है ।
मास्क के अंदर ढके ढके चेहरा पूरा,
पिछवाड़े से काम चलाना पड़ता है
बाहर से हर तरह छाई है मायूशी,
अंदर ही अंदर मुस्काना पड़ता है ।
न तो जगह और न लकड़ी मजबूरी,
एक पै धर के एक जलाना पड़ता है ।
खूब चाहकर भी दीदार न कर पाये,
उसके घर के पहले थाना पड़ता है ।
है दुकान पर कान नहीं भैया जी के,
फिर भी उनको गीत सुनाना पड़ता है ।
काम न धंधा बचा, बचा घर में न कुछ,
पका पकाकर भाषण खाना पड़ता है ।
हाय हाय है ,हलो हाय तो खत्म हुई,
फिर भी उनको श्रेष्ठ बताना पड़ता है ।
काट दिये सब एक पेड़ है छाया को,
क्षण क्षण उसका मान बढाना पड़ता है ।
करीं गलतियाँ और अभी सर पर बैठा,
हाँ में हाँ हर तरह मिलाना पड़ता है ।
गुरू सक्सेना