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19 May 2021 · 1 min read

नियम और कानून निभाना पड़ता है

गीतिका
नियम और कानून निभाना पड़ता है ।
कोरोना में धैर्य जुटाना पड़ता है ।

दिन में घर संध्या को जाना पड़ता है ।
पुलिस नजर से फेस बचाना पड़ता है ।

मास्क के अंदर ढके ढके चेहरा पूरा,
पिछवाड़े से काम चलाना पड़ता है

बाहर से हर तरह छाई है मायूशी,
अंदर ही अंदर मुस्काना पड़ता है ।

न तो जगह और न लकड़ी मजबूरी,
एक पै धर के एक जलाना पड़ता है ।

खूब चाहकर भी दीदार न कर पाये,
उसके घर के पहले थाना पड़ता है ।

है दुकान पर कान नहीं भैया जी के,
फिर भी उनको गीत सुनाना पड़ता है ।

काम न धंधा बचा, बचा घर में न कुछ,
पका पकाकर भाषण खाना पड़ता है ।

हाय हाय है ,हलो हाय तो खत्म हुई,
फिर भी उनको श्रेष्ठ बताना पड़ता है ।

काट दिये सब एक पेड़ है छाया को,
क्षण क्षण उसका मान बढाना पड़ता है ।

करीं गलतियाँ और अभी सर पर बैठा,
हाँ में हाँ हर तरह मिलाना पड़ता है ।

गुरू सक्सेना

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