नियमित बनाम नियोजित(मरणशील बनाम प्रगतिशील)
शिक्षक (सहायक) मरणशील हो गया और बिहार प्रगतिशील हो गया ,
मरणशील और प्रगतिशील दोनों एक दूसरे के पूरक हैं,
एक मर रहा है दूसरा गति पकड़ रहा है,
वाह क्या नीति है ,एक को मारो दूसरा को जीवन दो
क्या नैसर्गिक न्याय है ?
बिहार सरकार ने ऐसी ही नैसर्गिक न्याय देने को अपना निर्णय किया है,
सहायक (शिक्षक) को मारो , नियोजित (नए जीवित करो) करो। क्योंकि ज्यादा खाने वाले को मारो और कम खाने वाले को जीवित करो तभी तो बिहार प्रगतिशील (विकासशील, क्रियाशील) होगा ।
नए जो जीवित (नियोजित) हैं उनके सबकुछ कम में चल जाता है, क्योंकि उनके लिए महंगाई कम है,
बच्चे कॉन्वेंट में पढ़ाते नही, चिकित्सा निजी क्लीनिक में कराते नही, अपने परिवार भी कम कर लिए,
पालन पोषण में आने वाले खर्च भी कम कर लिए,
इनके लिए प्रगति अपना सबकुछ कम कर लेना है,
तभी तो बिहार प्रगतिशील हो रहा है ।
नियोजित (शिक्षक) प्रगतिशील हैं ,सहायक (नियमित शिक्षक) मरणशील हैं , दोनों एक दूसरे के परस्पर विरोधी व पूरक है ,एक रहेंगे तो दूसरा नही। और नही रहना ही दूसरे को जन्म देना (पूरा करने वाला) है।
ये सहायक (नियमित) उन्नति नही अवनति किए थे
कम खर्च थे वेतन ज्यादा लेते थे अर्थात महंगाई कम
पैसा ज्यादा लेते थे।
ये समय के साथ चले नहीं इसीलिए तो मरणशील हो गए । ये प्रकृति का नियम है जो समय के अनुसार चलता नही वह विलुप्त (मरणशील) हो जाता है।
वहीं नियोजित (प्रगतिशील) अल्प वेतन में इतना प्रगति कर रहे हैं, अर्थात बड़ा को छोटा कर लेना(ज्यादा खर्च को कम में बदल देना) ये तो प्रगति (विकास) हीं है न! जैसे बड़ा कोई सामान अब छोटे (डिजिटल) में हो गया हो और शक्ति तथा गुणवता बड़े की अपेक्षा ज्यादा ।
और उपलब्धि देखिए परीक्षा में बिहार सबसे आगे
इसीलिए सहायक मरणशील
और नियोजित बिहार प्रगतिशील……