नियति चक्र
बसंत व्यतीत हो गया ,
सुख अतीत हो गया ,
ग्रीष्म की तपन लिए ,
दुःख ही गीत हो गया ।
चैन ,अमन ,शांति सब ,
जाने कहां चला गया ,
जग का हर देश -देश ,
स्तब्ध रह छला गया ।
नियति चक्र में फंसे ,
छोड़ कर कुछ यूं चले ,
चाहकर कोई स्वजन
मिल सके न फिर गले ।
जो सर्व शक्तिमान थे ,
असहाय सारे आज हैं ,
समझ न सका कोई कुछ ,
गिरी ऐसी गाज है ।
लग रहा है हल कहीं ,
हमारे आस – पास है ,
फिर भी जाने ऐसे क्यों ,
चेहरा हर उदास है ।
विपत्तियां भी ले रही ,
नर का इम्तिहान है ,
जो विपद से लड़ गया ,
नर वही महान है ।
नर वही महान है ।
अशोक सोनी ।