नियति का खेल…परिवर्तन ये तो संसार का नियम.
एक उड़ते हुए पत्ते को देख
उसका वसंत याद आया..!
वो शैशव था कितना हराभरा..!
उमंग के कई उत्सव से भरा
हवा की लहरों से वो नाजुक पत्ता
कितनी मौज मस्ती करता था..!
प्यारे प्यारे हसीन दोस्तों के संग
ढेरो खुशियाँ बांटता था…!!
वो पेड़, वो डालियाँ, वो मौसम की बहारे
भरते थे उसमें कई रंगीन भरी रंगत सदा…!..!
पर…. मौसम बदला ऋतु बदली,
बाल्यावस्था, यौवनावस्था, और…. वृद्धावस्था
उन सभी से गुजर कर…सब से बिछड़कर
वो दर्द से तड़पता हुआ… संवेदना समेटता हुआ
उधर इधर भटक रहा था…!..!..!..!
शायद वो सहारा ढूढ़ रहा था.. इसलिये…
उदासी भरी तन्हाई में वो सुखा जा रहा था…
और… अपने अस्तित्व की तलाश ने
उसे दीवाना बनाया था…!!
वो पत्ते को देख अहसास हुआ…
ये हैं नियति का खेल बड़ा….
परिवर्तन ये तो संसार का नियम हैं
उससे कोई भी न अछूत रहा….!!!!!!!