निभाता चला गया
तुमने सौंपी थी जो मुझको जिम्मेदारियां
तमाम उम्र मैं उनको निभाता चला गया।
लिखे थे तुमने नग़में जो प्यार से भरे
जुबां से अपनी उन्हें गुनगुनाता चला गया।।
ना तुम बोल पाए ना मैं कुछ कह सका
कनखियों से जी तुम्हें देखता चला गया।
वो दुपट्टे में मुहँ छुपा कर तुम्हारा मुस्कुराना
अश्कों को दिल में छिपा चलता चला गया।।
अब तो यादें हैं तेरी और तेरे लिखे गीत
समय का पहिया यूँही बीतता चला गया।
जब कभी गुजरता हूँ उन वीरान गलियों से
सूनी पड़ी छत को निहारता चला गया।।