निपुण भारत पर कविता
जगमगाते सूरज की किरणों के संग,
उठता भारत गर्व से अपने रंग,
निपुण भारत हमारा देश प्यारा,
जहां बसती है विचारों की आपारा।
यहां धर्म की नहीं, जाति-पाति की परवाह,
न्याय की प्राथमिकता, सम्मान की अवधारणा।
निपुणता का पुलिंदा, जहां हैं सब एक समान,
अपने आप में यहां अद्वितीय और अनूठा भारतीय ज्ञान।
निपुणता की धारा से बहता है सभी का जीवन,
शिक्षा, विज्ञान, कला, साहित्य का सम्पूर्ण सागर है यहां।
विज्ञान के क्षेत्र में निपुण भारत आगे जा रहा है,
अंतरिक्ष, तकनीक, और उच्चतम मानवता की दौड़ में सही स्थान पा रहा है।
कला की धारा में भी चमक रहा है भारतीय ज्ञान,
रंग-रूप, संगीत, नृत्य की दुनिया में मदहोश कर रहा है सबको यहां।
विभिन्न शिल्पकारों की धुनों का संग्रह है भारत,
मधुर स्वरों से दुनिया को कर रहा है मोहित।
भारतीय साहित्य की बहार है यहां कविताएं, कहानियाँ,
निपुणता की धारा में बहती है ज्ञान-
प्रवाह सारे विधानों की अनूठी परंपरा।
विभिन्न भाषाओं में व्यक्तित्व की कहानियाँ हैं यहां,
हर अल्पविराम बना देता है यहां अपनी पहचान।
निपुण भारत, तेरी महिमा अपार है,
तू ही वो देश है, जहां निपुणता की पूजा है।
हर क्षेत्र में बढ़ रहा है तेरा नाम,
हो रोशन तू हमेशा, चमकता है तेरा काम।
निपुण भारत, हम सब तुझ पर गर्व करें,
तेरी उच्चता में हम सब अपना श्रेष्ठतम दर्जा पाएं।
तेरी कविता हर दिल को मोह जाए,
निपुण भारत पर हम लिखते हैं यह गीत सदा।