: निठल्ले :
जान कहाँ तक फूंकू मैं,
मुर्दों में, कोई बता तो दे!
आफत गले पड़ी है इसका,
हल हो कोई बता तो दे!
नाकारों की बस्ती में,
लगता मैं भी नाकारा हूँ,
कर्मवीर कैसे कहलाऊॅ?
उलझन है कोई सुलझा तो दे!
बातें करते हैं बड़ी बड़ी,
पर करते कोई काम नहीं,
हाय! डूब रही नैया इनकी,
कोई आके पार लगा तो दे!
करली है भीष्म प्रतिज्ञा सी,
मनमर्जी कभी न छोडेंगे,
रहना है निठल्ला जीवन भर,
चैलेंज है कोई डिगा तो दे!
ना समझ हैं ये, नादान हैं ये,
ना सुनते हैं, न समझते हैं,
बिन कर्म किये फल मिलता नहीं,
कोई आके इन्हें समझा तो दे!
✍️ – सुनील सुमन