“निज भाषा का गौरव: हमारी मातृभाषा”
“निज भाषा का गौरव: हमारी मातृभाषा”
ख़ुद के ही रंगों से, सारा घर द्वार सजाती है,
भाव निज भाषा के ही संग बाहर आती है!!
संस्कृति का दर्पण, भाषा अनमोल बनाती है,
वो भावनाओं की बूँद हर शब्द में छुपाती है!!
गंगाजल सी पावन, सरल इसकी धारा बहती है,
इसका हर नारा, जन-जन की आशा बनती है!!
माँ की लोरी में रची, पिता की सीख में बसती है,
जीवन की रसधारा, हिंदी भाषा में ही सजती है!!
हिंद के हर गाँवों में, हिंदी भाषा ही गूंजा करती है,
शहर की गलियों में, खुशबू इत्र सी महका करती है!!
त्योहार, पर्व, उत्सव इसके संग-संग चला करती है,
हिंदी के गीतों में परम स्नेह के दीप जला करती है!!
सभी बोलियों का संगम, इसकी पहचान बनाती है,
भारत की आत्मा में बसती, सच्चा सम्मान दिलाती है!!
कभी वीरों की गाथा, कभी प्रेम की कथा सुनाती है,
हिंदी भाषा ही भारत की संपूर्ण व्यथा बतलाती है!!
शब्दों की सजीवता, इसकी महानता को बढ़ाती है,
राष्ट्र की नव प्रगति में अपनी सहभागिता बताती है!!
हिंदी के संग गढ़ती, हर सपने का आकार संजोती है,
दैदीप्यमान नक्षत्र सी भावों में आभामंडल सजाती है!!
आओ, हम सब मिलकर अपनाते हैं, मान बढ़ाते हैं,
हर दिल के ताक में हिंदी का नव दीपक जलाते हैं!!
पूरी दुनिया के कोने-कोने में गौरव गाथा गूँजाते हैं,
हमारी मातृभाषा को, पूरे विश्व में पूजनीय बनाते हैं!!
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”