निजी विद्यालयों का हाल
आजकल
सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में
शिक्षा प्रदान करने का
नहीं रह गया है बलबूता
इसलिए
निजी विद्यालय ऐसे खुल रहे हैं
जैसे उगता है कुकुरमुत्ता
ऐसे विद्यालयों के शिक्षक बंधक होते हैं
अक्सर देखने को मिलता है कि
पत्नी प्रिंसिपल व पति प्रबंधक होते हैं
ऐसे संस्थानों में
ज्ञान के ग्राहक जाते हैं
मगर वे वहाँ से शिक्षा कम
भौतिक वस्तुएँ ज्यादा लाते हैं
इन दुकानों पर
वस्तुओं का मूल्य सुनते ही
इनका माथा हिलता है
क्योंकि वहाँ दसगुना से भी ज्यादा मूल्य पर
हर माल मिलता है
विद्यालय संचालकों की सेवा भावना
आकर धंधे पर टिक जाती है
और यही कारण है कि
यहाँ पर पच्चीस की नेक-टाई
तीन सौ तक में बिक जाती है
“हमारा शोषण हो रहा है”
ऐसा कह कर अभिभावक चिल्लाता है
फिर भी वहीं जाता है
वहाँ ज्यादती का रोना
अभिभावक भले ही रोता है
मगर सच तो यह है कि
इन विद्यालयों में सबसे ज्यादा शोषण
अध्यापकों का होता है
ऐसे ही शोषितों में मेरा भी नाम है
फिर भी सेवा भाव ही चारों धाम है
शोषित होना शौक नहीं, लाचारी है
क्योंकि पेट सब पर भारी है
जैसा कि अकसर होता है
मेरे विद्यालय के भी प्रबंधक महोदय
प्रायः आते थे
अध्यापकों की गतिविधियों पर
नुक्ताचीनी करते थे
कर्तव्य पर लंबा चौड़ा भाषण पिलाते थे
और मजे की बात तो यह थी कि
खुद एक सरकारी विद्यालय में हेड मास्टर थे
और वहाँ वे यदा-कदा ही जाते थे
उनका लेक्चर मैं भी सुनता था
कुछ दिन तक सहा
तब मौका देखकर एक दिन धीरे से कहा―
महाशय,
हम तो छूटभैया हैं
बड़ों से सीखते हैं
अब देखिए ना
आप भी तो महीने में पंद्रह दिन
यहीं दीखते हैं
प्रबंधक महोदय आशय समझे
शर्म से गड़ गए
सुधारने चले थे सुधर गए
रही प्रिंसिपल की बात
तो वह नारी होने के कारण
थोड़ा लाचार थीं
मायके से ससुराल तक
सबसे होशियार थीं
सुनती थीं कम, बोलने की आदी थीं
पूरा जनवादी थीं
कब्ज दूर करने के लिए
मीटिंग जमालगोटा था
अक्सर ही होता था
मीटिंग का नाम सुन
शिक्षकों को आता था रोना
‘हम घाटे में हैं’ जताकर
भिंगोती थीं आंखों का कोना
जब सामान्य होती थीं
तो वह कैसे सोई थीं
वह बातें भी सभी जान लेते थे
और जिन पर उनके तेवर चढ़ते थे
वे अपने आप को
दुनिया का सबसे अभागा व्यक्ति मान लेते थे
ऐसे ही एक दिन लिया जा रहा था
उनके द्वारा शिक्षकों का क्लास
मैं भी बैठा था पास
नदी की धारा की तरह बह रही थीं
कह रही थीं―
आप अंग्रेजी माध्यम के शिक्षक हैं
कैसे पढ़ाते हैं
आप और आपके बच्चे
अंग्रेजी बोल नहीं पाते हैं
जब भी कक्षा में जाइए
शर्म छोड़िए
अंग्रेजी बोलिए, अंग्रेजी बोलवाइए
वह शर्म छोड़ने को कहीं
मैंने हया भी छोड़ दी
मौन तोड़ दी
बोला―
मैडम हम हिंदी भाषी हैं
हिंदी हमारी मातृभाषा है
हिंदी माध्यम से पढ़े हैं
इसलिए हिंदी ही बोल पाते हैं
हम मजाक न बन जाएँ
इसलिए थोड़ा अंग्रेजी से घबराते हैं
आप प्रधानाचार्या हैं
हमारे घबराहट को दूर भगाइए
आइए―
हमसे अंग्रेजी बोलिए, अंग्रेजी बोलवाइए
जब कमजोर नस दबी, आशय ताड़ गईं
मगर अपनी कमजोरी छुपानी थी
गला फाड़ गईं―
देखिए… यह शख्स
बात बीच में काट रहा है
तनिक नहीं डर रहा है
मुसीबत खड़ी कर रहा है
मैंने जवाब दिया―
मैम,
मैंने कामचोरी बिल्कुल ही नहीं दिखलाई है
मेरी कर्मठता एवं स्पष्टवादिता से
आप पर मुसीबत आई है
मैंने मुंह खोलने की कर दी थी भूल
उनके दिल में चुभा था बन के शूल
बात-बात पर डांटने लगीं
बहाना ढूँढ़-ढूँढ़ कर
तनख्वाह काटने लगी
मैंने कहा―
मैडम, सभी अध्यापक
छुट्टी होते ही चले जाते हैं
आप मुझसे प्रायः
घंटा भर आगे पीछे काम करवाती हैं
फिर भी मेरी एक या दो छुट्टियाँ
आपको रास नहीं आती हैं
शायद वह टरकाना चाहतीं थीं
या बात थी कुछ और
बोली— कक्षा में जाइए
बच्चे मचा रहे हैं सोर
और जब मैं दूसरी तरफ आया
तो एक सहकर्मी फुसफुसाया
ये लोग प्रिंसिपल हैं, प्रबंधक हैं, बड़े हैं
आप इनकी हर बात का जवाब देने पर क्यों अड़े हैं
हम लोग बँधुआ मजदूर हैं
इसलिए डाँटते हैं
बॉस और कुत्ता दोनों ही काटते हैं
यहाँ जब किसी नए को लाया जाता है
सबसे बढ़िया बतलाया जाता है
और जरूरत निकल जाने पर
उसी के मुख पर कालिख पोत कर
भगाने का होता रहता है प्रयास
और पब्लिक में जगाई जाती है
पहले से बेहतर होने की आस
इस प्रकार चक्र चलता रहता है
वह फूलती रहती हैं
स्वार्थ फलता रहता है
मैंने कहा―
ये पूरे कमीशनखोर हैं
वेतन देने के मामले में चोर हैं
जो देना है उसमें से भी काटते हैं
पर हम वो नहीं
जो भ्रष्टाचारियों के तलवे चाटते हैं
ये चाहें जितना लूट मचा लें
अभिभावकों से खाते हैं, खा लें
पर इस गरीब का जो खाएँगे
सीधे रसातल में जाएँगे
मेरी बात उन तक पहुँचनी थी, पहुँची
वह तिलमिलाईं, जोर से कड़कीं
एटमबम की तरह से भड़कीं
पद के मद में झूल गयीं
और मुझे नौकरी से तो निकाला
मगर अवशेष वेतन देना भूल गईं।