निगाहों से औझल
*********** नजरों से औझल ************
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नजरों से औझल हो कर दिल में समाई रहती हो
जब भी जंभाई लेती होगी याद मुझे ही करती हो
नजरें मिलाता हूँ तो नजर झुका लेती हो तुम
कुछ कहता चाहता हूँ तो मुस्कुरा देती हो तुम
ऐसे लगता है जैसे तुम,प्यार मुझी से करती हो
जब भी……………………………………………
कहने को बहुत कुछ है पर ना कह पाता हूँ मैं
तेरे ख्यालों में दुनियाँ को भी भूल जाता हूँ मैं
मेरे दिल में दीपक चाहतों का तुम जगाती हो
जब भी…………………… ……………………….
तिनका हूँ राहों का उड़ा संग ले चलो तुम मुझे
आशिक हूँ तरे ख्वाबों का बाहों में समा लो मुझे
बेपनाह मोहब्बत करती हो,तो काहे को डरती हो
जब भी…………………………………………..
मेरा जीवन कोरा कागज सा बन गया है बिन तुम
नयनों के काजल से कविता प्रेम की लिख दो तुम
जीती बाजी ईश्के की क्यों बिन बात तुम हरती हो
ऐसा……………………………………………….
नजरों से ओझल हो पर दिल में समाई रहती हो
जब भी जंभाई लेती होगी याद मुझे ही करती हो
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ.वाली (कैथल)