निगाहें मिलाकर चुराना नहीं है,
ग़ज़ल
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निगाहें मिलाकर चुराना नहीं है,
मिला कर नजर अब हटाना नहीं है !
भले ही कहे जग मुहब्बत करो तो,
सनम से हक़ीक़त छुपाना नहीं है !
जो लड़ना पड़े गर,ज़रा तुम न डरना,
मगर हां, किसी को सताना नहीं है !
करो जो मुहब्बत करो दिल लगाकर,
जमाने को लेकिन बताना नहीं है !
कोई हाल-ए-दिल,जो पूछे तुम्हारा
कभी भी किसी को बताना नहीं है!
फ़साना यही है, मुहब्बत का यारों
लुटाना है सब कुछ बचाना नहीं है !
जुदाई के दिन या,मिलन की हो रातें
कभी दिल से उनको भुलाना नहीं है !!
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__डी के निवातिया__