“निखार” – ग़ज़ल
ख्वाब का रंग, हक़ीक़त से, उतर जाने दे,
ज़रा, अना को, अपनी मौत तो, मर जाने दे l
गिला न तुझसे, करूंगा, मिरे यारा हरगिज़,
सारे इल्ज़ाम, भले मेरे ही, सर जाने दे l
अश्क़ पी-पी के, गुज़रती है ज़िन्दगी मेरी
,मिलूंगा तुझसे, ज़रा और, निखर जाने दे l
फ़लसफ़ा प्रीत का, कर ले न, ख़ुदकुशी ही कहीं,
कभी तो मुझको, अपनी हद से, गुज़र जाने दे l
समा ही जाऊँगा मैं, तुझमे मकम्मल “आशा”,
मिरे वजूद को, कुछ और बिखर जाने दे..!
अना # अहंकार,EGO