Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Feb 2024 · 1 min read

निखर गए

ज़रा सी चोट से टूटकर बिखर गए,
कांच के टुकड़े थे पता नही किधर गए।
रहा न अब वजूद अपना,
तुम थे सब जगह, जिधर गए।
रहते है गुमनाम इन दिनों,
जो तुम्हारे साथ है वो तो संवर गए।

बड़ी तमन्ना थी ज़िंदगी में कुछ करने की,
सपने अब कुछ करने के तितर बितर गए।
मोहब्बत का दुष्प्रभाव एक ये रहा,
ज़माने के सारे लोग दिल से उतर गए।

रहता नही ख़ुद पर वश अपना,
पता नही चलता इधर गए या उधर गए।
तुझे अपनी संगत पर ध्यान देना चाहिए ‘अभि’
बुरे लोग भी तेरे साथ आने से निखर गए।

© अभिषेक पाण्डेय अभि

16 Likes · 152 Views

You may also like these posts

3051.*पूर्णिका*
3051.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
धर्मदण्ड
धर्मदण्ड
डॉ नवीन जोशी 'नवल'
#विषय नैतिकता
#विषय नैतिकता
Radheshyam Khatik
रमेशराज की कहमुकरी संरचना में 10 ग़ज़लें
रमेशराज की कहमुकरी संरचना में 10 ग़ज़लें
कवि रमेशराज
Be A Spritual Human
Be A Spritual Human
Buddha Prakash
रण गमन
रण गमन
Deepesh Dwivedi
मैं अशुद्ध बोलता हूं
मैं अशुद्ध बोलता हूं
Keshav kishor Kumar
बेसहारों को देख मस्ती में
बेसहारों को देख मस्ती में
Neeraj Mishra " नीर "
वतन के लिए
वतन के लिए
नूरफातिमा खातून नूरी
*शर्म-हया*
*शर्म-हया*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
"सब्र का आसमान"
Dr. Kishan tandon kranti
सुकून में जिंदगी है मगर जिंदगी में सुकून कहां
सुकून में जिंदगी है मगर जिंदगी में सुकून कहां
डॉ. दीपक बवेजा
संघर्ष जीवन हैं जवानी, मेहनत करके पाऊं l
संघर्ष जीवन हैं जवानी, मेहनत करके पाऊं l
Shyamsingh Lodhi Rajput "Tejpuriya"
र
*प्रणय*
किसी तरह मां ने उसको नज़र से बचा लिया।
किसी तरह मां ने उसको नज़र से बचा लिया।
Phool gufran
हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी
हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी
Mukesh Kumar Sonkar
मै ज़िन्दगी के उस दौर से गुज़र रहा हूँ जहाँ मेरे हालात और मै
मै ज़िन्दगी के उस दौर से गुज़र रहा हूँ जहाँ मेरे हालात और मै
पूर्वार्थ
आज बेरोजगारों की पहली सफ़ में बैठे हैं
आज बेरोजगारों की पहली सफ़ में बैठे हैं
गुमनाम 'बाबा'
दोहा सप्तक. . . . विविध
दोहा सप्तक. . . . विविध
sushil sarna
हे खुदा से प्यार जितना
हे खुदा से प्यार जितना
Swami Ganganiya
Ghazal
Ghazal
shahab uddin shah kannauji
जलधर
जलधर
डा. सूर्यनारायण पाण्डेय
जिन्दगी की शाम
जिन्दगी की शाम
Bodhisatva kastooriya
स्वर्ग से सुंदर समाज की कल्पना
स्वर्ग से सुंदर समाज की कल्पना
Ritu Asooja
*मौन की चुभन*
*मौन की चुभन*
Krishna Manshi
हम जैसे है वैसे ही हमें स्वयं को स्वीकार करना होगा, भागना नह
हम जैसे है वैसे ही हमें स्वयं को स्वीकार करना होगा, भागना नह
Ravikesh Jha
*सुवासित हैं दिशाऍं सब, सुखद आभास आया है(मुक्तक)*
*सुवासित हैं दिशाऍं सब, सुखद आभास आया है(मुक्तक)*
Ravi Prakash
संन्यास के दो पक्ष हैं
संन्यास के दो पक्ष हैं
हिमांशु Kulshrestha
जिंदगी एक ख्वाब है
जिंदगी एक ख्वाब है
shabina. Naaz
*हम नाचेंगे*
*हम नाचेंगे*
Rambali Mishra
Loading...