निकल कर कहां से ये आई खबर—- गज़ल
निकल कर कहां से ये आई खबर
मै ज़िन्दा हूँ किस ने उडाई खबर
हवा मे हैं सरगोशियां चार सू
न दे पर किसी को दिखाई खबर
किसी के यहां जश्न दिन रात हों
मुहल्ले को कब रास आई खबर
रकीबों के पाले मे रहबर गया
नही जा सकी फिर भुलाई खबर
पडी कान मे मुस्कुराती हुयी
मुहब्बत का पैगाम लाई खबर
कभी छू के होठों से बहकी फिरे
कभी हो जो तितली उडाई खबर
पतंगे के पंखों से चिपकी उडे
गुलों के लबों से चुराई खबर
बहुत दिन से बाहर न निकली थी वो
उदर मे पडी तिलमिलाई खबर
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