निकलते देखे हैं
आँखों से अंगार निकलते देखे हैं ।
चाहत में बीमाऱ निकलते देखे हैं ।
दरिया भी कितनी ही राहें बदले पर,
पानी से पतवार निकलते देखे हैं ।
आँसू कम आते हैं पलकों के रस्ते,
नफ़रत में हथियार निकलते देखे हैं ।
दामन क्यों गीला रहता है उल्फ़त का,
रिश्ते सब बेज़ार निकलते देखे हैं ।
सज़दा करना भूल गए “अरविन्द” यहाँ,
दिल से केवल ख़ार निकलते देखे हैं ।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०