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22 Feb 2024 · 1 min read

निकलते देखे हैं

आँखों से अंगार निकलते देखे हैं ।
चाहत में बीमाऱ निकलते देखे हैं ।

दरिया भी कितनी ही राहें बदले पर,
पानी से पतवार निकलते देखे हैं ।

आँसू कम आते हैं पलकों के रस्ते,
नफ़रत में हथियार निकलते देखे हैं ।

दामन क्यों गीला रहता है उल्फ़त का,
रिश्ते सब बेज़ार निकलते देखे हैं ।

सज़दा करना भूल गए “अरविन्द” यहाँ,
दिल से केवल ख़ार निकलते देखे हैं ।

✍️ अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०

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