निकलता है
सुन,
हृदय हुआ जाता है मृत्यु शैय्या,
नित स्वप्न का दम निकलता है।
रोज़ ही मरते जाते हैं मेरे एहसास,
अश्क बनकर के ग़म निकलता है।
रोकर सुनते हैं जो मेरी व्यथा को,
मेरे अपने हैं, ये भ्रम निकलता है।
रख छिपाकर अपनी पीर को नीलम
दो-दो चेहरे लिए सनम निकलता है।
नीलम शर्मा