निःस्वार्थ स्पर्श
किसी ने कहा है-
अकेले हम ही नहीं
शामिल
इस जुर्म में,
नजरें जब मिली
मुस्कुराये तुम भी थे !
हर वो स्पर्श पुण्य है
जब हम
किसी अनजान की
देह को-
निःस्वार्थ प्रेम के साथ
छूते हैं !
किसी ने कहा है-
अकेले हम ही नहीं
शामिल
इस जुर्म में,
नजरें जब मिली
मुस्कुराये तुम भी थे !
हर वो स्पर्श पुण्य है
जब हम
किसी अनजान की
देह को-
निःस्वार्थ प्रेम के साथ
छूते हैं !