निःशब्द
आओ थोङा निःशब्द हो जाए
शब्दों ने जो घाव दिए हैं
मौन का उन पर मरहम लगाएं।
शब्द फेंके थे किसी ने
जहर बुझे तीरों के जैसे
क्यों रख लिए सहेज कर मन में?
किताबों में रखे कोई गुलाब जैसे
कर दो क्षमा जो कहा सुना
मत ढोओ अब पीङा का दावानल
धुल जाने दो सब किल्बिष
बरसे आंसू का गंगाजल
भीतर उबलता लावा भी
अब शान्ति का अभिदान मांगे
कर दो विलय सब शब्द मन से
निःशब्द अपना स्थान मांगे।।