निंदिया मेरी सखी सहेली…
निंदिया मेरी सखी सहेली,
तूम आवो ना जल्दी – जल्दी…!
तूम आती हो क्यों देरीसे,
क्या खता हुई हैं मुझसे…!!
कितना तड़पाती हो,
फिर अखियाँ भी थक जाती…!
मन भी सोने के लिए तत्पर हो जाता,
तन की भी चाहत वो भी तूझे पुकारता…!!
आजा मेरी अखियाँ पे डेरा जमा,
तूज बिन कैसे मिटेंगी थकान की ऐ बेड़िया…!
रतियाँ भी भाग रही अपनी मंज़िल पर,
अब तो देर ना कर…
वर्ना कैसे ऊठ पाऊँगी भोर तक……!!