ना सखि गरमी
पकड़ कलाई देह लगावे
सखियन बीच मोहि तड़पावे
छोड़े न मोहे घर अंग ना
का सखि साजन?न सखि कंगना
अंग अंग सखि प्यास बढ़ावै
बगिया मा मोरे बौरावै
खींच अँचरा करे बेशरमी
का सखि प्रियतम?ना सखि गरमी
अधर निकट मैं लाऊँ जब-जब
बात करूँ हरषाऊँ तब-तब
कभी बोलूँ कभी रहूँ मौन
का सखि बालम?ना सखि फोन
जब देखो तब जाल बिछावे
जियरा मोर बहुत तड़पावे
छुड़ाऊँ मैं मार के लकड़ी
का सखि संजय?ना सखि मकड़ी