ना मै तुलसीदास हूँ
मैं नहिं तुलसीदास हूँ, गाँधी संत कबीर।
फिर क्यों दुनिया देख कर, कलम बहाये नीर।। १
लय-यति-गति-सुर-ताल से, मैं तो हूँ अनजान ।
गुणी जनों के साथ से , मिल जाएगा ज्ञान ।।२
हीरे मोती से नहीं, मुझे कलम से प्यार।
किसी और पर वश नहीं, शब्दों पर अधिकार।।३
नेह नूर से जो भरा, वही चाँदनी रात।
झुकते सूरज नित जहाँ, मेरी वहीं विशात।।४
खामोशी चीत्कार कर, कह उठती हर बात।
हरपल दिलों दिमाग में, जो करती उत्पात॥५
जीवन पथ पर जब कभी, मनुज भटकता जाय।
दीपक बन पथ पर जले, कविता राह दिखाय।। ६
– लक्ष्मी सिंह ? ☺