ना मानी हार
ना मानी हार की जीवन का,
आग़ाज़ अभी तो बाकि है।
थक कर दो पल बैठे हैं मगर,
परवाज़ अभी तो बाकि है।
है साँझ ढली तो दूर तलक,
काली सी चादर फैलेगी।
पर सुबह किरण सूरज की फिर,
धरती पर आ कर खेलेंगी।
है टुकड़ा भर नापा, पूरा
आकाश अभी तो बाकि है।
कतरा कतरा बिखरेंगे पर,
ऊँचे ही उड़ते जायेंगे।
हर बार हौंसला परों में,
चोंच में उम्मीदें भर लाएंगे।
तिनकों से महल बनाने का,
अंदाज़ अभी तो बाकि है।
ना मानी हार की जीवन का,
आगाज़ अभी तो बाकि है।