ना पूछो तुम हाल मेरे दिल का हो गया हाल बेहाल इस दिल का
ना पूछो तुम हाल मेरे दिल का
हो गया हाल बेहाल इस दिल का
दिल के दर्द को आँखों ने पनाह दी
बरस गये मोती बनकर
दिल लगाने की सज़ा आँखों को दी
बन गया समुंद्र नदी ने ना पनाह दी
गहराई में जाकर बस गए
इस गुनाह की हमे सज़ा दी
मुकर गए तुम वादों से
ये कैसी जबाँ दी
नदी की शांत धारा को
समुंद्र में समा दी
तूफानों में भी कश्ती अपनी
किनारों में लगा दी
तूफ़ान में आने की सज़ा देकर
किनारों से राह भटका दी
छिटक गये टूट कर
कैसी सज़ा दी
सूख गए शबनम धरा में
दर्द को धरा ने पनाह दी
चिर दिया सिना हमने लेकिन
तुमने ना अपने दिल में पनाह दी
रूठ कर चल दिए
मुड़कर देखने की
हमने तुमसे इल्तिज़ा की
दिल लगाने की कैसी सज़ा दी
दिल के ज़ख्म को आँखों ने पनाह दी
बरस गए मोती बनकर, इस दर्द की ना तूने दवा दी
भूपेंद्र रावत
25।09।2017