ना जाने कब…..
जाने पहचाने रिश्ते ना जाने कब अनजान हो गए
ना जाने कौन सी भीड़ में और कहां पर खो गए
कुदरत का कहर कोरोना बन कर बरसा था
ना जाने कितने रिश्ते यूँ ही चुप चाप सो गए
खोने से जिनकी ज़िन्दगी में अकेलापन छा गया
यादें ज़हन में और चेहरे दीवार पर फ्रेम हो गए
बचे हुए रिश्तों को संभाल लेना बुरी नज़रों से
कुछ और कहने को शब्द भी खामोश हो गए
फ़ोटो पर चढ़े फूल कहीं मुरझा ना जाये देखना
मुरझाने से पहले हि सभी फूल फिर ताजे हो गए
पढ़ने वालों दुआ रब से करना सबकी खुशी के लिए
हर दिल खुश दिल हो देखना कहीं देर ना हो जाये
वीर कुमार जैन
04 अक्टूबर 2021