नाज़ुक सी मेरी कली
नाज़ुक
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नाज़ुक सी मेरी कली, कहाँ छुपाऊँ तोय।
थर-थर काँपूं देखकर, जो कछु जग में होय।। 01।।
बाज
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पग-पग पर बैठे यहाँ, बाघ भेड़िये आज।
देखन में बगुला भगत, भीतर से हैं बाज।।02।।
© डॉ० प्रतिभा ‘माही’
नाज़ुक
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नाज़ुक सी मेरी कली, कहाँ छुपाऊँ तोय।
थर-थर काँपूं देखकर, जो कछु जग में होय।। 01।।
बाज
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पग-पग पर बैठे यहाँ, बाघ भेड़िये आज।
देखन में बगुला भगत, भीतर से हैं बाज।।02।।
© डॉ० प्रतिभा ‘माही’