नाज़नीं अब तेरी दोस्ती भी मिले
नाज़नीं अब तेरी दोस्ती भी मिले
ग़म मिले हैं बहुत कुछ खुशी भी मिले
काट लूँगा अँधेरे में मैं ज़िन्दगी
कुछ तो रुख़सार की रौशनी भी मिले
जी रहा हूँ बुझेगी मेरी प्यास कल
आज मंजूर गर तिश्नगी भी मिले
है मज़ा जीने का भी मेरे यार तब
आँख में गर खुशी तो नमी भी मिले
जिसमे खामी नहीं है वही तो ख़ुदा
गम न मुझमें कोई गर कमी भी मिले
– ‘अश्क’